मैंने आज एक कहानी पढ़ी ईदगाह। यह कहानी मुंशी प्रेमचंद ने लिखी थी। वह एक बहुत बड़े लेखक थे। ईदगाह में उन्होंने एक लड़के की बात की है। लड़के का नाम है हामिद। वह एक ग़रीब परिवार से है। हामिद के माता-पिता नहीं थे इसलिए हामिद अपनी दादी के साथ रहता था। एक दिन हामिद अपने दोस्तों के साथ मेले में जा रहा था। उसकी दादी ने उसे सिर्फ़ 3 पैसे दिये थे। लेकिन उसने कुछ नहीं बोला।
जब वह मेले में पहुँचा तब सबसे पहले मिठाई की दुकान सामने आई। हामिद के सारे दोस्त हामिद को चिढ़ाकर मिठाइयाँ खा रहे थे। फिर आई खिलौनों की दुकान जिसमें बहुत ज़्यादा अच्छे खिलौने थे। हामिद के अलावा उसके सारे दोस्तों ने कुछ खिलौने लिए। फिर आई लोहे और लकड़ियों की चीज़ों की दुकान तब हामिद की नज़र पड़ी एक चिमटे पर और उसे देखते ही उसे अपनी दादी की याद आई। जब हामिद की दादी रोटी सेंकती थी तब उनकी उँगलियाँ जल जाती थी। फिर हामिद ने दुकानदार से पूछा ये चिमटा कितने का है। दुकानदार ने कहा 6 पैसे का। हामिद ने बड़े बेमन से कहा कि 3 पैसे में दोगे और आगे चल दिया। फिर दुकानदार ने उसे रोककर बोला कि ठीक है 3 पैसे में ले जाओ। तब हामिद की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
हामिद के दोस्तों ने कहा कि ये चिमटा क्यों ले आया। इसके जवाब में हामिद ने कहा कि मेरा चिमटा चाहे कहीं से भी गिरे उसे कुछ नहीं होगा। तुम्हारे खिलौने अगर तुम्हारे हाथ से गिर जाये तो चकनाचूर हो जाएंगे। और फिर उसने ये भी कहा कि मेरे चिमटे को तो आग से भी कुछ नहीं होगा। क्या तुम्हारे खिलौने आग में टिक पाएँगे। इसके बाद हामिद के दोस्तों ने कहा कि तुम हमारे खिलौनों से खेल लो और हम तुम्हारे चिमटे को देखेंगे। हामिद को उनके खिलौने बहुत अच्छे लगे। फिर हामिद ने बोला कि मैं तो बस तुम्हें समझा रहा था वरना मेरे चिमटा से तुम्हारे खिलौनों की क्या बराबरी। लेकिन हामिद को अपनी दादी के लिए चिमटा लेकर बहुत ख़ुशी हुई। वो मेले से लौट कर घर पहुँचा तो उसने दादी को चिमटा दिखाया। पहले तो दादी नाराज़ हुई लेकिन हामिद की मासूमियत देखकर उनकी आँखों में आंसू आ गए।
ये कहानी हमें बहुत कुछ सिखाती है। बड़ों का हमेशा आदर करना चाहिए। उनके बारे में सोचना चाहिए।उनका ख़्याल रखना चाहिए। मुझे ये कहानी बहुत अच्छी लगी। आप भी इस कहानी को ज़रूर पढ़िएगा।




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